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Saturday, 13 September 2014

प्रतीक्षा

हवाई अड्डे पर अगली घोषणा कि प्रतीक्षा में बैठी राधिका कि असली प्रतीक्षा खत्म हुई जब उसके पीछे से शरारत भरी आवाज़ आयी - "तुम्हारा गुड्डा आज भी मेरे पास है |" सामने कान्हा था- उसके बचपन का मित्र | वह मुस्कुराते हुए बोला -"मैने कहा था ना, एक दिन मैं हवाई जहाज़ उड़ाउंगा | "

इस अप्रत्याशित अनुभव से राधिका कि आँखें नम हो गयी, वह कुछ जवाब ही नहीं दे पायी | अपनी भावना व्यक्त कर पाती उसके पहले ही विमान के उड़ान कि घोषणा हो गयी और कान्हा चला गया |


बरसों कि आरज़ू सामने हो तो दिल कि कसक मिट जाती है,
पलकों में भर आता है समंदर खुशियों का
|
जो शब्दों में बयान हो वो
एहसास ही क्या,
कुछ एहसास बयान करने में अनेक अल्फाज़
कम पड़ जाते है |


--------- कुछ घंटों बाद ---------

विमान 
के उड़ान के दौरान मंद-मंद मुस्कान लिए हुए राधिका के कानों में कान्हा की आवाज़ गूँज रही थी | मानो उसके कानों में किसी ने शहद घोल दिया हो, या जैसे मधुर संगीत बज रहा हो ! 

कोई वादा नहीं फिर भी एक इंतज़ार है,
रिश्तो 
की डोर पर एतबार है |
हर एक रिश्ते का कोई नाम नहीं होता,
हर एक रिश्ते का अंजाम नहीं होता |


अचानक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया | सब तहस नहस हो चुका था, सारे यात्री घायल थे | लोगों कि दर्द भरी चीखें हर ओर थी | कहीं खून बह रहा था, कहीं रुदन कि ध्वनि | राधिका बेहोश थी, पैर मलबे में दबे हुए थे | जब आँखें खोली तो उसे अपनी दृष्टि पर विश्वास ना हुआ, कान्हा के मृत शरीर को ले जाया जा रहा था |

अगले ही पल, आखरी साँस के साथ राधिका ने जवाब दिया - "मैंने भी कहा था ना, मुझे हवाई जहाज से गिरा मत देना.... ये प्रतीक्षा अब कभी खत्म ना होगी" 

वह बिना सुने ही चला गया |


--------- 5 साल पहले 
---------

गर्मी का मौसम था | एक दिन मामा के घर कि सफाई करते हुए कान्हा अचानक बेहोश हो गया | मामी बहुत कोसती थी, कहती, "इस अनाथ को जब से घर लाये हो हमारी तकलीफें बढ़ गयी है | इतना कमजोर है, कोई काम ठीक से नहीं करता | "मामी उसे दिन में एक बार ही भोजन देती थी |

बेचारा कभी उफ तक नहीं करता | अपने बचपन के सपने को साकार करने के लिए खूब मन लगा कर पढाई करता था | 

अक्सर ख़ुदा अपने बंदो का इम्तेहान लेता है,
ग़र दर्द दिया हैं तो मरहम भी वो ही देता हैं |


--------- 7 साल पहले ---------

अपने माता पिता के साथ रह कर कान्हा शहर में अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा था | पढाई में भी होशियार था | दुर्भाग्य से उसके माता पिता कि मृत्यु एक सड़क हादसे में हो गयी | उसके मामा अपनी बहन कि आखरी निशानी, 
कान्हा को अपने घर ले आए थे | उसे बहुत प्यार देते | परन्तु मामी उनके इस निर्णय से अत्यन्त हर्षित न थी |

--------- 2 साल पहले ---------

आज कान्हा कि जिंदगी में बरसों बाद ख़ुशियाँ लौटी थी | मामा भी बहुत प्रसन्न थे, उनका भांजा विमान-चालक (पायलट) जो बन चुका था |

उसके साथ एक विश्वास था - अपने माता पिता के आशीर्वाद का, अपने मामा के प्रेम का और अपनी बचपन कि दोस्त राधिका कि मित्रता का |

ज़िंदगानी हसीन हो जाती है, ग़र दिल से फरियाद करो,
हैं रात तो सुबह का इंतज़ार करो,
वक्त और नसीब पर एतबार करो,
उम्मीद का दीया रौशन लगातार करो |


कान्हा ने हर संभव प्रयत्न किया कि वह राधिका को ये शुभ सूचना दे सके, परन्तु वह असफल रहा | आठ साल से उन दोनो कि बात ना हो पायी थी | गांव में सूखा पड़ने के कारण राधिका का परिवार दूसरे गांव जा कर रहने लगा था | इसलिए उनसे संपर्क नहीं हो पाया |

 --------- आज का दिन ---------

राधिका का भाई विदेश में रहता था | रक्षाबंधन पर अपनी बहन से मिलने कि इच्छा से उसने लिए हवाई जहाज़ के टिकट भेजे थे | 


पहली बार शहर आयी सहमी-
सी राधिका हवाई अड्डे पहुँची | वहां की गतिविधियों की जानकारी ना होने के कारण पास बैठे एक यात्री से बात कर रही थी | उसकी नजरें कुछ ढूँढ रही थी, मानो उसे आभास हो गया हो के उसकी प्रतीक्षा अब खत्म होने वाली हैं |

 --------- 10 साल पहले ---------

आसमान में उड़ते हुए हवाई जहाज़ को देखते हुए वो बोला - "एक दिन मै हवाई जहाज उड़ाउंगा" | बदले में राधिका चिढ़ाते हुए बोली, मुझे गिरा मत देना अपने हवाई जहाज़ से! "

नदी किनारे कयी पहर दोनों साथ बैठे रहते | खूब खेलते, ढेर सारी बातें करते | ना जाने इतनी बातें कहां से आती उनके पास | साथ होते तो वक्त का होश ही नहीं रहता |

राधा रानी और श्री कृष्ण कि ही तरह राधिका बारह वर्ष की, और कान्हा ग्यारह का, राधिका का रंग गोरा और कान्हा का साँवला, राधिका भोली और कान्हा नटखट | 


वो मासूम बचपन,
वो नटखट शरारत,
वो मीठी नोक झोंक,
वो रूठना मानना,
वो गुड्डे गुड़ियों का खेल,
वो भोर कि रौशनी,
वो साँझ कि हवाएँ,
वो चाँदनी रात में तारे गिनना,
वो गिनती भूल जाना,
काश हमेशा साथ निभाता,
वो मासूम बचपन |



अगली शाम, मध्यम कद काठी का वो अबोध बालक साइकिल के पहिये को एक लकड़ी से घुमाता हुआ अपने पिताजी के साथ राधिका के घर पहुँचा | राधिका कि कजरारी आँखें और मोरपंख-सी पलकें उस दिन भीग गयीं जब उसे ज्ञात हुआ के उसका परम मित्र और उसका परिवार शहर जा रहे हैं | कान्हा के पिताजी का तबादला हो गया था | रुआंसा चेहरा लिए वह सब सुनती रही | 

गांव से निकलते वक्त कान्हा को राधिका ने अपना प्रिय मिट्‍टी का गुड्डा तोहफे में दिया | अक्सर उसे ले कर दोनों में मीठी तकरार होती थी | दबी आवाज़ में बोली, "इसे सदा साथ रखना " |

"मैं तुमसे मिलने कि प्रतीक्षा करूँगी |" इतना कहते हुए वो दौड़ कर अपने घर कि ओर गयी और किवाड़ बंद कर लिया | कान्हा ने तेज़ आवाज़ में उत्तर दिया - "मैं भी...." | वह बिना सुने ही चली गयी |

छोटी-सी आयु में उन्हे कहां ज्ञात था - "राधा और कृष्ण का मिलन भी कभी हुआ हैं भला ! "

Sunday, 15 June 2014

ख्वाबों का शहर

नम आँखों से जब अपने ख्वाबों को पूरा करने मैं अपने घर से दूर चलने लगा, वो सड़क बड़ी छोटी लगने लगी, ऐसा लगा काश वो सड़क खत्म ही ना हो. अपने साथ यादों का कारवाँ ले के चला था मैं. यूँ लगा उन सब यादों कि जुदाई सही ना जायेगी और घर के सामने कि वो सड़क लंबी हो जायेगी.

मेरे घर के हर कोने से मेरी अनेकों यादें जुड़ी थीं. चलते वक्त मन को बहलाने के लिए माँ कि बात याद आ गयी. उनने चिढ़ाते हुए कहा था की जहां मै जा रहा हूँ वहा इससे भी बड़ा घर होगा. अगले ही पल मन ने कहा - घर दीवारों से नहीं उसमें रह रहे लोगो से बनता है.

मन में भारीपन लिए पहुँच गया अपने ख्वाबों के शहर, उस सुंदर आलीशान घर के आगे मेरा अपना घर छोटा दीख पड़ता था,  फिर सोचा माँ जान कर बड़ी खुश होंगी!

उस अनजान नगरी में हर किसी के साथ कोई ना कोई था, आपस में हँसते-बोलते रहते और मै अकेला उन्हें तांकता रहता.

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उस भीड़ में मेरी नजर दो दोस्तों पर पड़ी. उनका वो मासूम-सा तकरार और अगले ही लम्हें में ढेर सारा दुलार, मानो एक दुसरे के साथ है तो दुनिया से कोई सरोकार ही नहीं. एक तरफ़ उन्हें देख कर खुशी हुई और फिर मेरे सबसे ख़ास दोस्त का ख्याल कर के दुःख.

कभी लगता था यहाँ से भाग निकलूँ, किंतु मेरे ख्वाब मुझे पीछे खींच लेते थे. उस तन्हाई के आलम में ख़ुद ही को समझा लिया करता था. दिन गुजरते गए. एक दिन माँ का ख़त आया, उनके जन्मदिन पर एक दिन के लिए घर बुलाया था. फिर क्या था, एक पंछी कि तरह उड़ चला अपने आशियने में. मेरे शहर कि गलियों कि वो महक, घर में घुसते ही माँ कि प्यारी-सी मुस्कान, पिताजी का दुलार और बहन का शरारत भरा झगड़ा - 'भैया, तुम खाली हाथ तो नहीं आ गए ना'! ऐसा लगा ख़ुद को फिर से पा लिया. जन्मदिन मनाने के बाद अपने ख़ास दोस्त से मिलने गया. खूब बातेंं कर अपना मन हलका किया.

हर्षित मन के साथ लौट आया अपने ख्वाबों के शहर, इस बार दुगने उत्साह के साथ!

मोह पाश से इंसान कभी नहीं छूट सकता, मगर चलते रहने का नाम ही ज़िंदगी है ना!

Sunday, 30 March 2014

THE END

(Short story - a  work of fiction)

You opened your eyes and discovered something - A peaceful place, white clouds all around; a glorious white light ubiquitously spread; all hazy; someone clad in white appeared from nowhere.

stairs-to-heaven

"You were on your way home and you died. And that's when you met me."

"What! Where am I? I don't understand....."

"You met a fatal accident, on your way home, a truck skid and then the car accident happened. They tried to save you, all in vain."

You exclaimed, "I....I died! Where is my wife? My children, are they fine? Who will take care of them? I want to see them."

"They all shall be fine soon. Your kids will remember you always. Your wife will cry, but secretly relieved. Nevertheless, your marriage wasn't working well."

"Oh. So what happens now, I will go to hell, heaven or something?"

"Neither. You will reincarnate."

"Reincarnate.! So, the Hindus were right."

"All religions are right my son."

"What's the point, then? I will start again as a baby, a blank slate. So all my experiences of this life shall vanish."

"Yes, you are nothing but a magnificent soul. You will be born as a Chinese girl to a farmer in 592 A.D."

"592 A.D., but that has already passed. You will send me to the past! What if I meet my future self then."

"Its only you who is born and dies again. You have reincarnated numerous times. In this universe there are just you and me. You are my child, and I, your father."

"Wait.. You  mean I everyone, and everyone else is me. I am Abraham Lincoln... I am Hitler... I am Akbar.. I am Mother Teresa.. the street side beggar, and I am.... I am Jesus.. Ram......and....."

"Now you get it, my child."

"Every time you victimized someone, you were victimizing yourself. Every act of kindness you've done, you've done to yourself. Every happy and sad moment ever experienced by any human was, or will be, experienced by you."

"You mean I am god."

"No, not now. You are a fetus, still growing, getting mature."

"I am sending you on your way now."

 

 

 

Saturday, 22 March 2014

Somewhere in the Mist


She lived in Oakland; Anna, the chubby girl in her mid 20’s was gifted with dimpled cheeks, curly hair and cat eyes. She was known for carrying a lovely smile and a pretty face. Deep inside, she hid profound grief; she was an orphan who lost her parents at the age of 11 and was brought up by her grandfather who also passed away about a year ago.

After a tiring day at work, now at her plush apartment, Anna had her dinner alone, and went to bed. It was half past 10. Lying on her bed, she was feeling short of sleep due to numerous thoughts that crept her mind. She was hugging her favorite doll and her long term companion, whom she called Dolly. Turning on and off the table lamp beside her bed she was looking at the photo frame hanged on the front wall. The photograph was taken on her 11th birthday when she and her parents were out for a holiday, where her mother – a thin lady with her brown unkempt locks of hair, dressed in a pretty white gown was standing beside her father. Her father, a tall and fair man, had dimpled cheeks; she inherited hers from him!  In the photograph, she was standing in the middle of her loving parents with Dolly in her hand. She recalled that her grandpa often told her the story of the true love of her parents.

This comely thought was soon overridden by the flashes of the life changing incident that occurred to the family that night while returning home. She always wondered whether it was her fortune or ill fate that she was the only one spared alive out of that fierce accident.

With a tear rolling down her eye, her cheeks turned pink and soon she fell asleep.

The next morning she got ready for her office in a lovely pink dress with polka dots. She took the 9:20 AM bus to her workplace.

As always, she reached the office by 9:45. Her closest friend for the last 3 years, Isabella called her to say she was waiting for her at the café`.

Bella, as Anna called her, was a thin and tall young girl, not as pretty as Anna, had a dusky complexion and thin hair extending up to her waist. She and Anna shared a lot of similarities on one hand and evident differences on the other. Unlike Anna, Isabella had limited friends. Isabella lived in the town with her parents, grandparents and a younger brother. She belonged to a middle class family who had limited resources for their living.

She said, with an alternate appearance of irritation and smile on her face, "Bella, I bet, you'll never change. You have such a weak memory!"
And Isabella replied, hiding her laughter, “Did I make some mistake again? “

Anna’s face drooped and she said, “No you didn’t. Let’s go back, I have a lot of work to finish today.” Regaining her senses, she continued with cheer, “What are you doing this evening? How about going to go for the new movie at the mall?”

“Sorry Anna, I have to take my grandmother to the Doctor today. She isn’t recovering well. We can plan for the movie some other day. Let us get back to work. Anyway, there is nothing so special about today!”

In a low tone, Anna replied, “You are right. We can go out some other day.”

It was 5 in the evening. Anna had already left for home, at her usual time. She took the 5:10 bus, reached home at 5:35, and changed her clothes. She played some soft music and sat in front of her parents’ photograph. She was unhappy today.

It was the day when she lost her parents years ago, and also her birthday.

Soon after, her phone ringed. It was an SMS from Bella. It read – “Need your help, come home soon.” Anna was worried on reading this. She tried calling back but couldn’t reach her. Without giving a second thought, she left for Isabella’s house in the town. It was 6:30 in the evening. She reached there by around 7 PM. She tried making calls to Bella throughout her transit, but couldn’t speak to her. This increased her anxiety.

As Anna reached in front of Isabella’s house, a ramshackle cottage, the darkness of the dusk caused her difficulty in seeing the entrance. While she was rushing in, she accidentally bumped into Isabella’s pet dog. She recalled that Isabella told her the name of her pet was Rusty. Rusty began barking at her. This added to the procrastination. Within moments, she saw Isabella’s grandfather, a stooping old man with barely countable hair on his head, stepping out of the house, called Rusty towards him and directed Anna to the entrance. The door was already open, she peeped in. The lights of the hall of that small dwelling were off. A startled Anna turned back to see Grandpa and Rusty, but couldn’t find them there.

She panicked and worried about her dear friend. Soon after she heard several people singing the birthday rhyme, “Happy Birthday to you, Happy Birthday dear Anna…” and the lights turned on. It was Isabella’s family in the room – her mother, father, brother, grandma, grandpa and Rusty in a corner! She couldn’t find Bella anywhere. She was gratified by this surprise but resentful that she was made to wait for the whole day. A scrumptious birthday cake was kept on a simple wooden table. She was glad to see the whole family offering a candid welcome. She had been missing this for years. The absence of her parents and her loneliness was filled by affection she received from the lovely family of her friend.

A thought abruptly struck her, Bella could be seen nowhere. She asked Isabella’s mother about her. Her mother took Anna to the nearby room where Bella was lying, enervated. Anna was shocked to see her Bella in this condition, her eyes filled with tears. Isabella’s mother narrated to Anna, that her daughter had an asthmatic attack in the evening in spite of which she was desperate to celebrate the special day for her close friend, and willing to bear this ailment for her sake.

Anna hugged her and broke into tears. She had no family, but Bella had. She was rich, Bella was poor. She was beautiful, Bella wasn’t. She made everyone smile, but was unhappy deep inside. Bella was in poor health but had the urge to bring back smile to her friend. Anna hugged her and realized that it was their differences which made their bond special and that there is nothing called misfortune, but the way you interpret what occurs to you.