सुबह उठी, बेटे के स्कूल का लंच बॉक्स बनाया,
सोच चख लूं, मिर्च ज़्यादा हुई तो भूखा लौट आएगा,
पति जॉगिंग कर के घर आये, संतरे का जूस बनाया,
सोचा चख लूं, कहीं खट्टा तो नहीं बना ,
दोपहर का भोजन बनाया, लगा दाल में नमक कम हो गया होगा,
सोचा चख लूं, कहीं सबको पसन्द ना आई तो,
बेटा स्कूल से वापिस आया, पकौड़े की फरमाइश करी,
बनाते हुए सोचा चख लूँ, ठीक से पका या नहीं,
शाम की चाय का समय हुआ, किसी को अदरक चाहिए किसी को शक्कर कम,
सबकी चाय थोड़ी थोड़ी चख लेती हूं, कहीं उनके मुँह का स्वाद ना बिगड़ जाए,
रात का भोजन जब बना, साथ मे सलाद भी काटा,
सोचा चख लेती हूं, कहीं फिर से कड़वा खीरा तो नहीं खरीद लायी,
सुबह बनी हुई खीर पति ने बड़े शौक से खाई, शाम को भी खाने वाले होंगे,
सोचा चख लेती हूं, कहीं गर्मियों की वजह से खराब ना हो गयी हो।
दोपहर में दही जमाने के लिए रखा था, कल सबको लस्सी पीनी है,
सोचा चख लेती हूं, कहीं खट्टा तो नहीं हो गया,
हमारे भारतीय परिवारों में हर घर में माँ, पत्नी, बहु शबरी ही तो है। जो घर के सदस्यों के भोजन को पहले बेर की तरह चख लेती है। इससे वह आश्वस्त हो जाती है कि उसका परिवार सुरक्षित, स्वस्थ और भोजन से प्रसन्न है। और यही विश्वास परिवार जनों को अपनी शबरी पर है।
यह कविता उन समस्त शबरी रूपी महिलाओं को समर्पित।
The heading is very correct
ReplyDeleteNice one👌🏻
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