Tuesday, 2 August 2022

विचार मंथन





प्रतिदिन के इस स्पंदन में,
अनन्त चलते विचार मंथन में,
संयोंग ये रहता हर मन में,
अथक चलती है विचार धारा,
हर मन असन्तोष का मारा,


क्यों नहीं मिला मुझे जो उसने पाया,
खत्म कहाँ होती हर मन की माया,
श्रृंखला है अद्भुत अनंत सुख प्राप्ति की,
कैसे वर्णन हो क्या है सुख की परिभाषा,

बस ये मिल जाये और हम ख़ुश हो जाएं,
बस वो मिल जाये फिर हम तृप्ति पाएं,
परिश्रम किया, पूजन किया और सुख मिल ही गया,
किन्तु श्रंखला में जुड़ गई बेहतर सुख की आशा,
ऐसा है मानव जीवन का तमाशा,

कैसे समझाएं इस चंचल मन को,
कितना संवारें विचारों के घर्षण को,
पार कैसे कर पाएं इस गुरुत्वाकर्षण को,
गुत्थी सुलझाएं कहो कैसे अब हमको,

सहज साधारण है इसका समाधान,
हँस के जीने का है प्रावधन,
नियति, प्रकृति और परिश्रम पर कर विश्वास,
खुशियों का करो आभास।

2 comments:

  1. हंसना ही समाधान है

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  2. So deep and relatable, enjoyed reading throughout

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