जब एक बच्चा जन्म लेता है,
तब माँ का भी जन्म होता है,
कैसे उसे सुलायें,
कैसे नहलाएं,
पेट भरा या नहीं कैसे जान पाएं,
भूखा तो नहीं कैसे बतलायें,
इतना क्यों रोता है,
ठीक से क्या वो सोता है,
कितनी डरी सहमी वो रहती है,
आख़िर माँ भी तो अभी जन्मी होती है,
इंजीनियर डॉक्टर बनने में सालों लग जाते हैं,
कोचिंग और इंटर्नशिप भी करवाते हैं,
माँ को तो सीधा परीक्षा में ही बैठते हैं,
योग्यता और तैयारी के प्रश्न कहां आते हैं,
पूरा जीवन वो मातृत्व सीखने में लग जाती है,
लेकिन हर पल नवजात सी वो घबराती है,
सवालों के जवाब आजीवन देती जाती है,
कटघरे में खड़ा ख़ुद को पाती है,
बच्चा क्यों दुबला है, क्या ठीक से नहीं खिलाती हो,
परीक्षा में कम अंक आये, क्या उसे नहीं पढ़ाती हो,
इतनी व्यस्त रहती हो क्या बच्चे पर ध्यान दे पाती हो,
तुमने उसे बिगड़ा है, क्यों नहीं आंख दिखाती हो,
अपने परों को समेट कर उसने आँचल बनाया है,
माँ ने ख़ुद को भुला कर उसे अपनी पहचान बनाया है,
अपने मन की तरंग को विराम उसने लगाया है,
तब जा कर उसने माँ के रूप में जन्म को सार्थक बनाया है।
Bahoot sundar Bhabhi❤️❤️
ReplyDeleteThanks again :D
DeleteSo true annd relatable
ReplyDeleteThanks a lot :)
DeleteAwesome bhabhi ❤️
ReplyDeleteIsliye to kaha hai
किताब के खाली पन्नों की तरह कोरा हूँ मैं,
तेरे बिन माँ अधूरा हूँ मैं।
Thank you :)
Delete