मुद्दतों में उठायी कलम हाथों में,
देख कागज़-ए-ख़ाली हम खो गए,
लफ़्ज़ों के आईने में देख ख़ुदा को,
ख़ुद ही की मौसिकी में मशगूल हो गए,
मन को तराशा बेबाक़ अल्फाज़ो में,
कांटे भी फूल हो गए,
एक बूंद गिरी स्याही यूँ दवात से,
फिर छिपे सारे राज़ गुफ़्तगू हो गए,
क्यूं ना करें इन पन्नों से बातें,
ये ही है जो रूठा नहीं करते,
स्याही की छाप से जब पन्ना रंग जाता है,
मन से निकला हर लफ़्ज़ कागज़ पर रम जाता है,
बोल उठते हैं शब्द, जब ये कागज़ हवा में फड़फड़ाता है,
इत्मिनान देता है कागज़ का टुकड़ा जब मन भर आता है,
एक कहानी और कहानियों में कई कहानी,
मन की उड़ान की रफ्तार लिख कर है दर्शानी,
दौड़ भाग में रहते व्यस्त करते हर दम काम काज,
छोड़ के ये सब मद मस्त हो जाते हैं आज।
बुनते है आज ग़ज़ल सुहानी या कोई कहानी,
बातें जानी या अनजानी जो है हमें दुनिया को सुनानी।
Bahut badhiya
ReplyDeleteThank you!
DeleteI liked this poem, balanved use ofnhindi and urdu vocabulary
ReplyDeleteThanks Pragati.
Deleteबुनते रहे आप ग़ज़ल सुहानी या कोई कहानी,
ReplyDeleteहो चाहे जानी या अनजानी,
बस पढ़ते रहे हम यू ही बातें सुहानी।
Thanks for the lovely lines!
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