इस लेख को पढ़ने के पहले ये जान ले कि इस विषय पर मेरे विचार पाठक के विचारों से भिन्न हो सकते हैं। हर व्यक्ति की श्रद्धा अलग होती है और उसका ईश्वर से जुड़ने का माध्यम भी। हो सकता है जिन अनुभवों से मुझे तृप्ति मिलती हो अन्य व्यक्ति को ना मिले। इसलिए करबद्ध निवेदन है कि मेरे मत से किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचे तो क्षमा करें।
हमें बचपन से सिखाया जाता है भगवान से एक्सचेंज ऑफर और ब्लैकमेल का व्यवहार करना। हम भगवान से कुछ इस प्रकार आदान प्रदान करते हैं-
हमने आपके लिए व्रत किया, इसके बदले हमें कुछ दीजिये।
ये वाले भगवान से इस चीज़ की प्राप्ति होती है तो चलो इनकी भक्ति करते हैं, दूसरे काम के लिए दूसरे भगवान के पास जाएंगे।
भगवान से डरो, प्रेम मत करो | उनको इसलिए मानों क्योंकि तुम्हें मानना चाहिए।
हमने आपको 1 रुपया, 2 रुपया या 10 रुपया चढ़ाया, आप हमें गाड़ी बंगला दीजिये।
जिसने हमें सब कुछ दिया है हम उसे क्या कुछ रुपये देंगे। कहीं सुना था- "चढ़ती थीं उस मज़ार पर चादरें बेशुमार, लेकिन बाहर बैठा कोई फ़क़ीर सर्दी से मर गया"|
फ़र्ज़ कीजिये किसी व्यक्ति ने अपनी माता के लिए किसी ऐसी भाषा में पत्र लिखा है जो आप नहीं जानते। उसने आपको वो पत्र दिया और कहा कि इसे अपनी माता को सुना देना वह प्रसन्न होगी। क्या आप अर्थ जाने बिना, किसी अन्य भाषा मे लिखा हुआ पत्र और किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की हुई उसकी माँ की प्रशंसा को यूं ही अपनी माँ को सुना देंगे? नहीं ना। तो फ़िर बिना अर्थ जाने धार्मिक ग्रंथ या आरती या मंत्र का पाठ कैसे कर लेते हैं। अपनी भाषा में अपनी श्रद्धा अनुसार अपने ईश्वर से प्रार्थना अथवा वार्तालाप क्यों नहीं करते।
क्यों ना हम अपने ईश्वर से अपेक्षा किए बिना भक्तिभाव से जुड़ने की चेष्टा करे। जो प्राप्त हुआ उसका धन्य्वाद और जो हमारे लिए उचित हो उसकी प्राप्ति के आशिर्वाद कि आकांक्षा करे |
(Disclaimer: This post does not intend to harm, defame, or hurt the sentiments of any person, gender, religion, political party, news channel, religious belief, god or to whomsoever it may concern. I sincerely apologize in advance if it is so.)
फ़र्ज़ कीजिये किसी व्यक्ति ने अपनी माता के लिए किसी ऐसी भाषा में पत्र लिखा है जो आप नहीं जानते। उसने आपको वो पत्र दिया और कहा कि इसे अपनी माता को सुना देना वह प्रसन्न होगी। क्या आप अर्थ जाने बिना, किसी अन्य भाषा मे लिखा हुआ पत्र और किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की हुई उसकी माँ की प्रशंसा को यूं ही अपनी माँ को सुना देंगे? नहीं ना। तो फ़िर बिना अर्थ जाने धार्मिक ग्रंथ या आरती या मंत्र का पाठ कैसे कर लेते हैं। अपनी भाषा में अपनी श्रद्धा अनुसार अपने ईश्वर से प्रार्थना अथवा वार्तालाप क्यों नहीं करते।
क्यों ना हम अपने ईश्वर से अपेक्षा किए बिना भक्तिभाव से जुड़ने की चेष्टा करे। जो प्राप्त हुआ उसका धन्य्वाद और जो हमारे लिए उचित हो उसकी प्राप्ति के आशिर्वाद कि आकांक्षा करे |
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