Monday 17 April 2017
Monday 10 April 2017
मैंने खुशियां ख़रीद ली
शहर की जगमग छोड़ कर मैंने उगते सूरज की रोशनी ख़रीद ली,
सिनेमा का विकर्षण छोड़ कर मैने किताब के पन्नो की खुशबू ख़रीद ली |
अपेक्षा का आसमान छोड़ कर मैंने प्रतीक्षा की ज़मीं ख़रीद ली,
बचपन का दामन छोड़ कर मैंने बचपने की अदाएं समेट ली।
रुई का गद्दा त्याग कर मैंने मां की गोद सहज ली,
दिन की दौड़ धूप त्याग कर मैंने सांझ की छांव सहज ली |
कोलाहल की ध्वनि नकार कर मैंने एक ग़ज़ल ख़रीद ली,
मोबाइल पर दौड़ती अंगुलियों को विराम कर मैंने वक़्त की घड़ियां ख़रीद ली।
सुविधाओं की अनंतता का बोध कर मैंने सुकून की दो रोटियां ख़रीद ली।
ख्वाहिशों को थोड़ा कम किया मैंने और खुशियां ख़रीद ली।