Monday, April 06, 2015 In: hindi, poem, urdu 4 comments शख़्सियत इस कदर लोगो को हँसाना मेरी आदत ना समझो, हर क़दम रिश्ते बनाने की इसे शिद्दत ना समझो | खुदगर्ज़ी है मेरी और मुझे खुदगर्ज़ समझो, मेरे जनाज़े में चलने वालो की तादात बढ़ाने की कोशिश समझो ।| Email ThisBlogThis!Share to XShare to Facebook
Waha MANSI Waha.....:D
ReplyDeleteNice one..!!
Thanks Sumit Jain :)
ReplyDeleteNice lines :)
ReplyDeleteThanks :)
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