Saturday, December 27, 2014 In: poem, urdu No comments बेगुनाह उसे वतन सरहदों ने मुक़र्रर करवाया, उसे मज़हब परिवार ने मंसूब करवाया| उस बेक़सूर मोहरे को जिंदा से मुर्दा बेरहम जहान ने बनाया, जब उसे इंतिक़ाम-ओ-दहशत का शिकार दहशत-गर्दो ने बनाया|| Email ThisBlogThis!Share to XShare to Facebook
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