चंचल मन है नटखट ऐसा,
कभी भागता इक ओर, कभी दौड़ता उस छोर,
इसके खालीपन में गुंजित होती एक आस कहीं,
भर जाता उल्लास से अगले पल बस यूँ ही |
नाचता है मद भरे मोर सा कभी,
कराहता गम भरे अनाथ सा कभी,
कैसे जताये इस पर अपना अधिकार,
ये ना करता हमारी इच्छा अभिसार ||
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