बस यूँ ही हम जिये जा रहे हैं,
खुश रह्ने के तरीके ढूँढें जा रहे हैं!
कहाँ गयी वो मासूमियत,
खो गयी वो शरारत,
झूठी हँसी को खुशी का नाम दिए जा रहे हैं,
क्या सोचा और क्या किए जा रहे हैं,
बस यूँ ही हम जिये जा रहे हैं,
खुश रह्ने के तरीके ढूँढें जा रहे हैं!
आगे बढ़ने कि होड़ में ,
जीवन कि इस दौड़ में,
ख़ुद ही को पीछे छोड़ें जा रहे हैं,
सीमाओं का बहाना दिए जा रहे हैं,
बस यूँ ही हम जिये जा रहे हैं,
खुश रह्ने के तरीके ढूँढें जा रहे हैं!
-By Mansi Ladha
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